पाकिस्तानियों ने यहां गांव के गांव फूंक दिए थे, सेना ने दोबारा बसाया, सड़कें-स्कूल बनाए, आज यहां आर्मी के खिलाफ कोई कुछ नहीं सुनता - News Hindi Me

Papermag-smooth

All global news,entertainment,cricket news,Bollywood news,television news,world news.

Home Top Ad

Responsive Ads Here

Post Top Ad

Monday, October 26, 2020

demo-image

पाकिस्तानियों ने यहां गांव के गांव फूंक दिए थे, सेना ने दोबारा बसाया, सड़कें-स्कूल बनाए, आज यहां आर्मी के खिलाफ कोई कुछ नहीं सुनता

orig_7_1603661475

(मुदस्सिर कुलु) उत्तरी कश्मीर में बारामुला जिले का बोनियार इलाका 73 साल पहले पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों के हमले का गवाह बना था। घुसपैठियों ने इस इलाके में लूटपाट कर गांव के गांव जला दिए थे। लेकिन सेना ने यहां सड़कें, स्कूल, अस्पताल बनवाकर इलाके की तस्वीर ही बदल दी है। 27 अक्टूबर इन्फैंट्री-डे के मौके पर सेना हर साल यहां कार्यक्रम आयोजित करती है, जिसमें स्थानीय लोग, पुलिस और प्रशासन के अफसर शामिल होते हैं। यह इलाका सेना और लोगों के लंबे जुड़ाव का गवाह भी है।
22 अक्टूबर 1947 को करीब 1000 कबाइलियों और पाकिस्तानी सेना मुजफ्फराबाद पर कब्जा करने के बाद बोनियार पहुंचे थे। लेकिन शीरी गांव के मकबूल शेरवानी और गांव वालों ने उन्हें यह कहकर रोके रखा कि बारामुला के बाहर भारतीय फौज खड़ी है। थोड़ा रुक जाएं तो वो खुद उन्हें रास्ता दिखाएंगे। इस तरह इन्होंने कबाइलियों को भारतीय सेना के श्रीनगर पहुंचने तक गांव में ही रोके रखा।

5 दिन बाद 27 अक्टूबर को सिख रेजीमेंंट की पहली बटालियन दिल्ली से श्रीनगर पहुंची और कबाइलियों के मंसूबे नाकाम कर दिए। हालांकि इसमें सेना के कुछ अफसरों और 19 साल के मकबूल को जान गंवानी पड़ी। श्रीनगर में सेना के प्रवक्ता कर्नल राजेश कालिया बताते हैं कि 1947 में सेना के पहली बार घाटी में कदम रखने और शहादत देने वालों की याद में 27 अक्टूबर को इन्फैंट्री-डे मनाया जाता है।

हम हर साल यहां कार्यक्रम आयोजित कर गांव वालों से मिलतेे हैं। बोनियार के लोगों के साथ हमारा नाता काफी मजबूत है। वहीं दूसरी ओर, यहां के लोग सेना को बहुत मानते हैं और सेना के खिलाफ सुनना तक पसंद नहीं करते। वे बढ़-चढ़कर सेना भर्ती में भी शामिल होते हैं। फिलहाल यहां के 2000 युवा इस वक्त सेना में कार्यरत हैं।

युवाओं द्वारा हथियार उठाने के मामले भी कम सुनने मिलते हैं। समय-समय पर सेना यहां मेडिकल कैंप भी लगाती है। सेना ने यहां सड़कें, अस्पताल, स्कूल बनाने के साथ घरों तक पानी की पाइपलाइन भी बनाई है। इस काम में स्थानीय लोगों को भी रोजगार दिया जाता है।
एलओसी से 4 किमी दूर त्रिकंजन गांव में रहने वाले रिटायर्ड स्कूल टीचर 71 वर्षीय राजा नजर बोनियारी बताते हैं, ‘मेरे पिता बताते थे कि घुसपैठियों ने हमारा घर भी जला दिया था। पूरे इलाके में दहशत फैला दी थी। ये लोग हजारा, कगन, गिलगित और पेशावरस से लूट और कब्जे के मकसद से आए थे।

अल्लाह का शुक्र है कि सेना ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया।’ राजा बताते हैं कि वे अपने रिश्तेदारों से मिलने 28 बार सीमा के उस पार जा चुके हैं। 65 साल के गुलामउद्दीन बांदे बताते हैं कि ‘हम हर तरह से सेना पर आश्रित हैं। सेना ने यहां इतना कुछ किया है और लगातार कर भी रही है।’

मकबूल न होता, तो पूरे इलाके पर कब्जा कर लेते कबाइली

यहां के लोग सेना के बाद मकबूल को हीरो मानते हैं। शेरी बारामुला के मुश्ताक अहमद बताते हैं ‘यदि मकबूल घुसपैठियों को नहीं रोकता तो वे सेना से पहले श्रीनगर पहुंच जाते। हमें गर्व है कि मकबूल ने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।’ 2004 में मकबूल की याद में शेरवानी कम्युनिटी हॉल के बाहर पत्थर लगाया गया। इस मौके पर तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा भी मौजूद थे।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
orig_7_1603661475
ओल्ड बारामुला की इसी सड़क से पाकिस्तानी सेना और कबाइली आए थे।


from Dainik Bhaskar /national/news/the-pakistanis-blew-village-here-the-army-resettled-built-roads-and-schools-no-one-listens-against-the-army-here-today-127850086.html

No comments:

Post a Comment

If you ave any issue please contact us

Post Bottom Ad

Pages